महिला दिवस कैसे मनाया जाये ... (कविता)
जब तक है विश्व में पुरुषों का वर्चस्व ,
महिलाओं की तो छवि धूमिल रहेगी.
जब तक रहेगा उनपर पुरुषों का एकाधिकार ,
अपनी पहचान वोह कैसे बनाएगी ?
समाज के द्वारा बेड़ियों -जंजीरों में बंधी वोह,
अवांछित रीति -रिवाजो से आज़ाद कैसे होगी?
औरत के लिए कभी तो स्वयं औरत है शत्रु ,
कब तक जन्म लेते ही मार दी जाएगी.
और कभी उस नाज़ुक कलि ने जन्म ले भी लिया ,
तो फूल बनने से पहले ही नोच ली जाएगी.
भला जिस समाज में सुरक्षित ना हो कोई भी महिला ,
बुज़ुर्ग, जवान या छोटी मासूम ,अबोध बच्चियां ,
खुली हवा में वोह गर साँस न ले सके ,
अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन न जी सके ,
क्या औचित्य रह जाता है महिला दिवस का .
बोलो ! हे पुरुष ! गर देते हो तुम हमें पूरी आज़ादी,
और देते हो समानता का दर्ज़ा , कुछ सम्मान और प्रेम दे दो ,
चलो हमें तुम इंसान ही समझ लो ,
तब इस महिला दिवस को मनाना सार्थक कहा जायेगा.
यूँ समझ लो ! किसी महंगे तोहफे से कहीं बड़ा ,
हमारे लिए यहीअमूल्य तोहफा होगा.
अन्यथा आँखों में आंसुओं की बरसात ,
और दिल हो ग़मों से बोझिल हो तो ,
भला ऐसे में महिला दिवस कैसे मनाया जाये ?