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4 Mar 2018 · 1 min read

आशाओं के धुँधले उजियारे

उलझ गए कुछ यूँ बातों के बटवारे में,
ग़ुम हुए कुछ यूँ शब्दों के उजियारे में।

प्रश्न बना खड़ा है जीवन पल प्रति पल ,
प्रश्नों के अनसुलझे अंधियारे गलियारों में।

जगमग आकांक्षाएं चमक चाँदनी-सी,
घनघोर निशाओं के गहरे अंधियारों में।

खोजा करते प्रतिदिन जीवन पथ पर,
आशाओं के धुँधले से उजियारे में।।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…

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