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7 Feb 2018 · 1 min read

मुक्तक

मैं शामों-सहर तेरा ख्वाब देखता हूँ!
दर्द का ख्यालों में आदाब देखता हूँ!
अजनबी सी बन गयी हैं मंजिलें लेकिन,
रंग ख्वाहिशों का बेहिसाब देखता हूँ!

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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