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9 Jan 2018 · 1 min read

दुखी हूँ मन से फिर भी मिल रहा हूँ !

दुखी हूँ मन से फिर भी मिल रहा हूँ !
मै दिया हूँ इसलिये ही ज़ल रहा हूँ !!

कभी मिल ही जायेगी मंजिल मुझे !
आज तक इसीलिये ही चल रहा हूँ !!

तोड़ लेगा वो मुझे ये जानकर भी !
क्या बताऊँ मै फिर भी खिल रहा हूँ !!

क्या सिखायेंगें पाव के छाले मुझे !
जब आज तक तो मै पैदल रहा हूँ !!

चेहरे से अौकाद मेरी ना आंकों !
किसीके जेहनका मैभी संदल रहा हूँ !!

भगवान के जैसे पूजा है मुझे भी !
किसी के घर का मै भी पीपल रहा हूँ !!

मुझे ना कहो लाचार मेरी सुनो !
“कृष्णा”मुद्धतों मैं भी बादल रहा हूँ !!

-:कवि गोपाल पाठक :-(कृष्णा)

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