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15 Jan 2020 · 1 min read

जलता जंगल

जल रहा था वो जंगल बेतहाशा

देख रहा था वो मानव ये क्रूर तमाशा

चीखें सुन रहा था ना जानें क्यूँ चुपचाप

साज़िश थी कोई या हुआ था ये सब अपनेआप

लपटों और चिंगारियों का मेला था

उस जंगल में आज,हरएक जीव अकेला था

देखले ऐ कुदरत,तूने क्या अनोखी चीज बनाई

तेरे ही आँचल में तेरे बच्चों ने ये कैसी आग लगाई

कैसे होगी बेजुबानों के ज़ख्मों और आहों की भरपाई

मिटता गया जंगल रह गया बस धुआँ-धुआँ

दोनों हाथ उठाकर दिल ने माँगी बस यही दुआँ

इंसा हूँ,पर इंसा होने पर आज बड़ी शर्मिंदगी है

निर्दोषों के रक्त से भी साफ ना हो पाई हम वो गंदगी है

-सरितासृजना

[दोस्तों मन बहुत आहत है।आंकड़े देखिए कितने ही पशु पक्षी जल गये।जान तो जान होती है क्या मनुष्य क्या जानवर।जरा सोचकर देखिए उस वक्त को जो उन्हें खाक कर गया।]

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