Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Dec 2017 · 1 min read

ये कैसी चली हवा है

122 122 122 122

वहम था जिसे बस यही वो खुदा है।वही आज तूफां में औंधा पड़ा है।।

सने हाथ उसके पिता के लहू से।
खुदा जाने कैसी चली ये हवा है।

सवेरे सवेरे जो निकलें वो घर से।
तभी दिन हमारा शुरू ये हुआ है

मिली जब नजर उस क़ातिल सनम से।
इरादा ये मरने का हमने किया है

जो खामोश नजरों से दामन ये थामा।
तो अपने पे ही हो रहा अब गुमां है।

आरती लोहनी

Loading...