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29 Dec 2017 · 1 min read

*धार चलते चलते *

बनके धार धार पर,यों बहती जा रही ।
है ना कहीं मकान मेरा कहती जा रही।१।

पीती आई आज लों, हर घाट का पानी
जानो सच बात है , अजीबो कहानी ।
घाव कंटकों के साब , सहती जा रही ।।
बन के धार——————————-।२।

देखा घूम धार में , बढ़ती सी दूरियां
चाँद जैसा मुखड़ा ,सह रहा है झुर्रियां।
देह धनुकार लिए , लहती जा रही ।।
बनके धार——————————-।३।

चलती राह में ना पता,कहीँ विश्राम का
आ जाए कब काल , मौत ए संग्राम का।
चिंता मग्न राह में , वह हहती जा रही।।
बनके धार——————————-।४।

विचार आपो आप ,फुट जाते हैं कंठ से
आराधना के स्वर , गा रही है चंच से ।
रेत जैसी जिंदगी , यों ठहती जा रही ।।
बनके धार——————————–।५।

डूब रहे आँखों के तारे, गहरी झील में
तन होगा ये विलीन,जलनिधि के नील में।।
रेखियां रिश्तों की दूर, हटती जा रही ।।
बनके ———————————— ।६।

असंख्य अवरोध आते रहे ,चलती धार में
छोड़ आई उन्है उनके, इसी संसार में ।।
जलके जल में जीवन नैया,नहती जा रही।।
बनके धार———————————।७।

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