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26 Oct 2017 · 1 min read

मैं ख़ुश हूँ

मैं ख़ुश हूँ

मैं ख़ुश हूँ
मैं एक जगह खड़ा हूँ
जहाँ से मुझे ग़म
दिखता नहीं है
ख़ुद में।
मैं तरंगित हूँ
और मुझमें नित रोज़
नई तरंगे उन्मादित
उदित हो रही है
मैं उनकी कम्पन का स्पंदन
अपने हर रोम में महसूस करता हूँ
फिर उन कम्पन को
उन लोगों में बाँटता हूँ
जो पाषाण हो चले हैं
जो निर्जीव अवस्था
की ओर चल रहे हैं
चल रहे हैं क्योंकि
ये नियति है मान बैठे है
पर मेरी नियति का क्या?
मैं तो तरंगित हूँ।
उन्मादित उत्तेजित हूँ।
कल कल नदी जैसा
मधुर गीत अंदर
बहता रहता है
मैं भी बहता रहता हूँ
दूसरे के ग़म उधार लेता हूँ
बदले में थोड़ा प्यार देता हूँ
बड़े आश्चर्य में हूँ
ग़म लेना तुम्हें
हल्का कर देता है
तुम्हारे भीतर एक जगह
ख़ाली कर देता है
और ज़्यादा प्यार भरने के लिए
तो इसका मतलब ये हुआ कि
प्यार पालना और रखना
ज़्यादा भारी है
प्यार देने से ग़म लेने से
भीतर हल्का जो लगता है।
गंगा अभी भी जीवित है
संसार से इतने ग़म ले के
और इतना ज़्यादा प्यार देके
कल कल बह तो रही है आज भी
इसलिए मैं ख़ुश हूँ।

यतीश २५/१०/२०१७

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