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23 Oct 2017 · 1 min read

मैं बहुत छोटा था

मैं बहुत छोटा था

मैं बहुत छोटा था
पर ख़्वाब बड़े थे
रास्ते मंज़िलों के
आँखों में पड़े थे
मेरी नन्ही उँगलियों ने
कितने सपने गिने थे
मैं चल दिया था
संग हौंसले जड़े थे
दुआएँ ढेर सारी
धमनियों में घुले थीं
मेरी रौ में रवानी थी
तिश्नगी में सने थे
पथरीली राहें मेरी थी
धूप के छींटे मिले थे
मैं उतना गिन न पाता था
तलवों में जितने आबले थे
सुकूं भी पास आता था
ओस से जब मिले थे
सफ़र की ताप सहकर
आबो-ताब मेरे बढ़े थे
न जाने कब कारवाँ से
परे अकेले हम खड़े थे
मंज़िलें पास थी जितनी
ज़मीं से उतने फ़ासले थे
मैं थकता तो नहीं था
पर अब ख़ुद के गिले थे
सुकूं का मर्ज़ था ऐसा
ज़मीं फाँके पड़े थे
राहों में चलके मैंने
सपनों के गुहर चुने थे
गुहर के भार में दबकर
भँवर के जाल में फंसकर
ख़्वाबों के राह से हटकर
क्यों दुनिया से हम लड़े थे
मुक़ाम पे आकर देखा तो
सुरूर की अब इंतहा थी
जब उस ऊँचे टीले पे बैठा था
ख़ुश-फ़हम और हम अकेले थे

तिश्नगी=तृष्णा प्यास
गुहर=मोती
सुरूर=नशा

यतीश १७/१०/२०१७

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