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3 Sep 2017 · 1 min read

कभी धुप तो कभी छाव सी है ये ज़िन्दगी

कभी धुप तो कभी छाव सी है ये ज़िन्दगी
तो कभी बहती नाव सी है ये ज़िन्दगी

कभी मंझधार में लटकी तो
कभी किनारों की कश्ती है ये ज़िन्दगी

कभी चिरागों में रोशन तो
कभी काले स्याह में भटकती है ये ज़िन्दगी

कभी आसमां में उडती तो
कभी कटती पतंग सी है ये ज़िन्दगी

कभी रोती हुई सी है तो
कभी हंसती हुई सी है ये ज़िन्दगी

कभी आफताब सी चमक तो
कभी चाँद सी नर्म है ये ज़िन्दगी

कभी जख्म है तो
कभी मरहम है ये ज़िन्दगी

कभी कफ़स में कैद तो
कभी फैज़ है ये ज़िन्दगी

कभी अपनों का सा प्यार तो
कभी अपनों से तकरार है ये ज़िन्दगी

कभी प्यास सी है तो
कभी बेमौसम बरसात सी है ये ज़िन्दगी

भूपेंद्र रावत
3/08/2017

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