Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 Nov 2018 · 1 min read

माँ,तुम कहाँ हो

जाड़ों की अलस्सुबह में
आँगन में उतरती धूप में माँ तुम हो
गर्मियों की चुभन में
चलती ठंडी पुरवाई में माँ तुम हो
बरखा की पहली बूंदों में
आती मिट्टी की सुंगध में माँ तुम हो
आकाश की ऊंचाईयों में और
समुद्र की गहराइयों में माँ तुम हो
नहीँ दिखती तुम अब हर जगह,पर
महसूस होती हो हर जगह तुम
लड़खड़ाती ज़िंदगी के सहारे में
उलझनों की सुलझन में माँ तुम हो
मेरी धड़कन में ,मेरी नस नस में भी माँ तुम हो
आँखें बंद करके सुकून पाती हूँ तब
जब महसूस करती हूँ अपने अंदर तुमको मैँ,
ठगी रह जाती हूँ तब
जब तुम झाँकती हो,,मेरे बच्चों के चेहरे में
हाँ माँ
तुम मेरे पास ही हो।
—दीपशिखा भारद्वाज (चंडीगढ़)

Loading...