Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Sep 2016 · 1 min read

कुछ कुण्डलिनी छंद

कुछ कुण्डलिनी छंद
■■■■■■■■■■■■■■
1-
मस्ती मेँ कटती नहीँ, उन लोगोँ की रात।
गर जो ये करते नहीँ, श्रम वाली बरसात।
श्रम वाली बरसात, श्रमिक ही ले आते हैँ।
ये सारे धनवान, तभी तो सो पाते हैँ।।
2-
गाते, कलियाँ, कोकिला, नदी, पेड़ अरु घास।
यूँ लगते मदमस्त हैं, आए ज्यों मधुमास।
आए ज्यों मधुमास, काश तुम भी आ जाते।
खिलते दोनों साथ, झूमकर हम तुम गाते।।
3-
होली के हुड़दंग मेँ, मस्ती का यह ढंग।
जी चाहे हर रंग को, रख लूँ अपने संग।
रख लूँ अपने संग, अंग से इसे लगा लूँ।
पी लूँ थोड़ा भंग, संग तेरे मैँ गा लूँ।।
4-
होली यह तेरे बिना, देती दर्द अपार।
रंगोँ की बौछार मेँ, सूखा है त्योहार।
सूखा है त्योहार, यार मैँ भी मुरझाया।
ना तूँ मेरे यार, नहीँ संदेशा आया।।
5-
ऐसे तुम क्योँ हो रहे, भाई पीले लाल।
भाई पीले लाल क्योँ, मैँ जो हूँ कंगाल!
मैँ जो हूँ कंगाल, नहीँ हैँ इतने पैसे।
इतने पैसे पास, न डूबो रँग मेँ ऐसे।।

– आकाश महेशपुरी

Loading...