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28 Aug 2017 · 1 min read

अहसास

अहसास

कितने ही बीत गए वर्ष
हर्ष में भी, विषाद में भी
जिन्दा हूँ क्यों,में मर नहीं सकी
अब तो हो गई है आदत
सहज सहज जीने की
फिर भी उठती रहती है
एक गहरी कलेजे में हूक
लगता है तुम साथ होते
ऐसा होता, वैसा होता
पर नहीं हो सकती थी
स्वार्थी
तुम्हे यहां रोक कर
तुम्हारा कष्ट, तुम्हारी तकलीफ
न में दूर कर सकती थी
न तुम्हारी तड़फ देख सकती थी
अच्छा हुआ तुम चले गए
रोग मुक्त तो हुए
मिला होगा तुम्हे
एक नया अवतार
इस संसार में
हम तुम न पहचाने
एक दूसरे को
पर एक दूसरे का असितत्व
होता है अटल
एक सच्चा सच
जब कभी मिलो
आवाज अवश्य देना
हो सकता है
पहचान पाये या
न पहचान पाये
अहसास हल्का-सा
अवश्य करा देना।

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