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15 Jul 2017 · 1 min read

बह ए मुतदारिक़ मुसम्मन सालिम ---जन्मदायिनी माँ

मित्रों माँ जन्मदायिनी है लाल के सुख और दुख को समान भाव से लेती है सुख मे सुख,मे दुखमे दुख की अनुभूति करती है अगर लाल को कहीं कभी कोई दर्द होता है पहला शब्द माँ
होता है माँ ममता की सागर है माँ अतुलनीय है कभी -कभी कुदरत कैसा खेल रचना माँ हो जाती है किंकर्तव्यविमूढ़ दिल पर पत्थर रख करती है अपने वचन की रक्षा———– महाभारत पर्व से ————–
बह ए मुतदारिक़ मुसम्मन सालिम
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मापनी – २१२ २१२ २१२ २१२
माँ कही एक दिन लाल सुन लो ज़रा
ज्ञान मन मे भरो लाल गुन लो ज़रा
राज कहना नहीं तू कभी प्यार में
नारि को श्राप है लाल धुन लो ज़रा
पांडु नंदन दिए कर्ण के प्रेम मे
नारि कहना वचन , प्यार बुन लो जरा
मातु यह क्या किया पाप मुझसे हुए
बोल देती अगर , राज चुन लो ज़रा
जो दिए थे वचन , लाज रखने पड़े /
लाल खोना कठिन तार झुन लो ज़रा/-

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