Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Jul 2017 · 1 min read

असर

नफरतो के असर दिखाई दे रहे है

हर तरफ कहर दिखाई दे रहे है

असर क्या हुआ जश्ने आज़ादी का

लाशो के शहर दिखाई दे रहे है

गाँव की मिट्टी गुम हो गई है कहीं

रिश्ते नाते नहीं दिखाई दे रहे है

भटक रहे है नौजवां राहे मंजिल की

पढ़कर भी अनपढ़ दिखाई दे रहे है

मेरी शक्सियत भी कहीं खो चुकी

बुढ़ापे के असर दिखाई दे रहे है

मै भारत हूँ मुझे मत बांटो ‘’बनारसी’’

मुझमे जीने के और दिन दिखाई दे रहे है

Loading...