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27 Jun 2017 · 1 min read

मैं और तुम

हम कुछ बिना सोचे समझे से हैं
तय किये बिना ही मिले से हैं

मैं और तुम दो कंधों से हैं
रोते हुए एक दूसरे को चुप कराने के लिए
कभी आराम करने को, कभी सुलाने के लिए

मैं और तुम धुंधले चित्र हैं
कुछ बताते नहीं, पर सब कुछ जताते हुए
यादें समेटे हुए हम, हंसाते रुलाते हुए

मैं और तुम जलती मोमबत्तियां हैं
जिनकी रोशनी में परछाइयां नाचती दिखती हैं
रोशन होते आशियाँ, नज़दीकियां बढ़ती दिखती हैं

तुम ही मेरे ‘अंत’ और तुम ही ‘आरम्भ’ हो
तुम मेरे ‘कभी नहीं’ और तुम ही ‘हमेशा’ हो

–प्रतीक

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