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12 May 2017 · 1 min read

"विडम्बना"

देवालय में स्थापित
पाषाण कृति
पूजित होती नित
नतमस्तक हो
मस्तक घिसते
मिल जाते कितने शूरवीर
शक्ति से लेकर अभय दान
चल पड़ते
करने दूषित
शक्ति का प्रतिरूप जीवित
जो निकला
बाहर मन्दिर से,
मग पर बढ़ने,
चढ़ने उत्तुंग शिखर
पाने को निज का ज्ञान,मान
मग रोक उसीका
छलने का
नित करते प्रयास
पूजी जिसकी
पाषाण कृति
अपमानित उसको ही करते
जब जीवित देह
आती समक्ष
विस्मृति के हो कर वशीभूत.
बल का बलात्
करते प्रयोग
करते शक्ति का
मान खण्ड
ये कैसा दोहरा मानदण्ड
उद्दण्ड मुक्त, विचरे उन्मुक्त
कैसी विडम्बना यह प्रचण्ड!
खण्डित मूर्ति के
भाग्य दण्ड ?
अपर्णा थपलियाल”रानू”
५.०४.२०१७

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