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7 May 2017 · 1 min read

शब्दों का खेला

“शब्दों का खेला”
शब्द हथियार है ं
बेसोचे उछाल दो तो
दोधारी तलवार हैं
शब्द संप्रेषण उत्कृष्ट
तो पट जाती
टूटते रिश्तों की गहरी खाई
और ढह जाती
दरार बनी दीवार
कभी शब्द मरहम
कभी नितांत बेरहम
शब्दों का जाल
कभी जी का जंजाल
और यही जाल
कभी करता कमाल
भाषा के खिलाड़ी
निज शब्दों से खेलते
शब्दों के सागर से
गागर जो भर लेते
भाषा की गंगा के
पार बस उतर पाते।
भाषा वैतरणी है
रचना है नैया
शब्द पतवार बनें
रचियता खिवैया।
अपर्णा थपलियाल”रानू”
३०.०४.२०१७

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