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28 Aug 2021 · 3 min read

साहित्य, साहित्यकार और ढकोसला

साहित्य, साहित्यकार और ढकोसला
-विनोद सिल्ला

दुनिया में प्रत्येक राष्ट्र अपने साहित्य व साहित्यकारों का यथेष्ट सम्मान करता है। भारत में साहित्य और साहित्यकारों को जाति, धर्म व भाषा के आधार पर स्वीकारा या नकारा जाता है। जाति, धर्म व भाषा के आधार पर ही अवार्ड, अनुदान व अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। प्रतिभा, योग्यता, योगदान व उपलब्धियां सब गौण हैं। दरबारी भांडों की परम्परा निभाने वालों की कमी कभी नहीं रही। ये आज भी बड़ी मात्रा में दांतों से दमड़ी पकड़ रहे हैं। हमारे यहाँ साहित्य के नाम पर बड़े पाखंड किए जाते हैं। पूरी दुनिया में साहित्यकार को उसके साहित्य पर रॉयल्टी मिलती है। हमारे यहाँ लेखक निजी प्रयासों से धन खर्च कर के पुस्तक प्रकाशित करवाता है। सोशल मीडिया के प्रचलन के बाद तो साहित्यिक पाखंड सिर चढ़कर बोलने लगा। आर्थिक सहयोग आधारित सांझे संकलन भी वाट्सएप यूनिवर्सिटी की ही खोज है। आज के दिन बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा लेखक ग्रूप-ग्रूप खेल रहा है। सोशल मीडिया के हर ग्रूप में अलग खेल। हर ग्रूप के अलग एडमिन। प्रत्येक एडमिन के, अपने ग्रूप के या यूं कहें कि अपने खेल के अलग-अलग नियम हैं। हर रोज प्रत्येक ग्रूप में लेखन के लिए अलग विषय दिये जाते हैं। उस समूह के प्रत्येक रचनाकार को अपनी कल्पना-लोक में उड़ने वाली सृजनशीलता के पंख कतर कर, उस समूह के एडमिन की उंगली पर नाचना पड़ता है। नहीं तो एक मिनट में समूह से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। फिर एडमिन तमाम वर्तनी की अशुद्धियों वाली, एक ही विषय होने के कारण, सबकी लगभग एक ही जैसी कच्ची-पक्की, रचनाओं को सम्मानित किया जाता है। सम्मान पत्र में एडमिन व उसके चमचे- कड़छे- पलटे सबके हस्ताक्षर व फोटो युक्त रचनाकार का नाम लिखा ई-प्रमाण-पत्र थमा दिया जाता है। जिसका कागज के टुकड़े पर प्रिंट आउट निकाल कर साहित्यकार फूला नहीं समाता। उसके बाद लेखक ई-प्रमाण-पत्र के प्रदर्शन करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। ट्विटर, इंसटाग्राम, वाट्सएप, फेसबुक और जाने कौन-कौन सी साइटस पर चस्पा कर परम सुख प्राप्त करता है। बधाई देने वालों को धन्यवाद-धन्यवाद लिखता नहीं थकता। ई-प्रमाण-पत्र प्राप्त होने पर इतनी जय-जयकार होती है कि वह अपने आपको वरिष्ठ कवि, वरिष्ठ लेखक, राष्ट्रीय कवि, अंतर्राष्ट्रीय कवि, महाकवि जाने क्या-कया उपमा दे डालता है। बेचारा करे भी तो क्या करे आत्मश्लाघा के दौर में कौन किसकी तारीफ करता है। यहाँ अपनी तारीफ स्वयं ही करनी पड़ती है। कुछ ऐसे वरिष्ठ साहित्यकार हैं। सूर्य भले ही निकलने छिपने से चूक जाए, उनका सम्मान पत्र आने से नहीं चूकता। एक-आध बार एक दिन में दो-दो, तीन-तीन सम्मान पत्र झपट लेते हैं। प्रत्येक ग्रूप में बताते हैं आज 999वां सम्मान पत्र प्राप्त हुआ। जहाँ कहीं होंगे कबीर, पंत, निराला व प्रेमचंद पीट लेते होंगे अपना माथा। उन्हें क्यों नहीं मिले इतने सम्मान पत्र, जितने प्राप्त कर लिए अन्नत राम दुबे ने।
उनके समय क्यों नहीं हुए, ऑनलाइन कवि सम्मेलन, ऑनलाइन लेखन प्रतियोगिता, ऑनलाइन सम्मान समारोह। धन्य हैं सम्मानित करने वाले, धन्य हैं सम्मानित होने वाले। आज वाट्सएप और सोशल साइट्स पर अक्सर संदेश मिल जाते हैं। इतने रुपए में आपकी रचना, राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित होगी। इतने रुपए में आपका साक्षात्कार सचित्र होगा प्रकाशित। इतने रुपए में हमारी राष्ट्रीय पत्रिका में आपके कृतित्व व व्यक्तित्व पर आधारित विशेषांक प्रकाशित होगा। इतने रुपए में होगा आपका भव्य सम्मान। इतने रुपए में मानद उपाधि मिलेगी आपको। आपकी जेब आज्ञा दे रही तो आप देश के टॉप-टेन लेखकों में भी शुमार हो सकते हैं।
एक व्यापारिक पृष्ठभूमि के दिमाग में चमत्कारिक विचार टपका। बेचारे वक्त के मारे साहित्यकारों पर तरस कमाकर, उस विचार को अमली जामा पहनाने के प्रयास में सोशल मीडिया पर एक संदेश छोड़ा। संदेश के माध्यम से मनमोहक अंदाज में लिखा “विदेश भ्रमण साथ में अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मान” पांच दिन की नेपाल की साहित्यिक यात्रा सिर्फ थोड़े से रुपए में। इतना मनमोहक संदेश, भला कौन होगा जो पुन्य का भागी नहीं बनना चाहेगा। सबने निर्धारित राशि, निर्धारित समय से पूर्व ही जमा करवा दी। सैंकड़ों की संख्या में तय कार्यक्रम अनुसार नेपाल गए। निर्धारित राशि निवेश करके, मौहल्ले के कवि से सीधे राष्ट्रीय कवि की पदोन्नति पा गए। जो चूक गए, वे किसी ऐसे ही अन्य मौके की तलाश में प्रतीक्षारत हैं। जहाँ चाह, वहाँ राह। इन्हें भी अवसर मिलेगा। अभी और भी बहुत कुछ देखना बाकी है। आगे-आगे देखिए होता है क्या? पुस्तक संस्कृति नहीं रही तो ग्रूप का एडमिन क्या करे? हिन्दी साहित्य सड़क किनारे 150 रुपए प्रति किलोग्राम बिके तो ग्रूप का एडमिन क्या करे? उसके मोबाइल में तो ई-बुक व ई-पत्रिका बहुत हैं।

कॉपी राइटस लेखकाधीन

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 892 Views
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