**** वसंत ऋतु ****
[[[[ वसंत ]]]]
बसंती रीतु में बसंती साड़ी पहन करके,
आई बसंती नार बिखराती बसंती बहार ||
बसंत पंचमी के पूजनोत्सव मनाने अब,
चल पड़े सारे बाल-गोपाल और नर-नार ||
सरस्वती मय्या हम सबके अज्ञान हर लें,
सम्पूर्ण जन मानस को वरदान से भर दें ||
करते रहें हम सब पूजा – अर्चना उनकी,,
प्रकाशित सारे संसार को ज्ञान से कर दें ||
बसंती रंग वीरों को लुभाए मन को भाए,
रंग दे बसंती चोला कह के वीर गीत गाएं ||
चहु दिशा व चहु ओर बसंती बहार छाए,
बसंत रीतु में बासमती बसंती बयार आए ||
बाग-बगीचे, गली-गलियारे गम-गम गमके,
महके नर-नारी के तन-मन और घर-द्वार ||
पपीहा, कोयल भी झूमे-नाचे, कूक लगाएं,
क्रीड़ा करें, नवोल्लास मनाएं खग-संसार ||
उधर भँवरा गुन-गुन गुंजन करता फिरता,
इधर कलियाँ फूल बनने के लिए ललचाएं ||
समझ में ना आए कौन किसको भरमाता,
बसंती पवन चहु ओर ये कैसा भ्रम फैलाए ||
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दिनेश एल० ” जैहिंद”
01. 02. 2017