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23 Mar 2017 · 1 min read

उँगलियाँ उठेगी वफ़ा पर तुम्हारी

दिलों में उतरता नज़ारा नही है
मगर ये सफ़र छोड़ आना नही है

गुजर यार जाता बुरा दौर ये भी
हो मगरूर तुमने पुकारा नही है

सुनो ये डगर मुश्किलों से भरी है
अगर बढ़ चले लौट जाना नही है

उँगलियाँ उठेगी वफ़ा पर तुम्हारी
मुझे ज़ख्म अपना दिखाना नही है

नमक खूब छिड़का मेरे ज़ख्म पर वो
गुनहगार मेरा जमाना नही है

कटी ज़िन्दगी मुफलिसी में हमारी
सहारा तुम्ही हो ठिकाना नही है

– ‘अश्क़’

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