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22 Mar 2017 · 1 min read

~~ बिखरे पल ~~

बड़ी सहजता के साथ
मैं तुम को समेट रहा हूँ
गुजरे हुए पलो
तुम संग दिन गुजार रहा हूँ

यादों में मेरी बसे
हो सब समेटे हुए
क्या तुम से दूर रह कर
जी सकूंगा मैं

वक्त डर वक्त दरकार
रहती है मुझ को तुम्हारी
कैसे में दूर रह पाऊंगा
याद आती है तुम्हारी

जब भी था अकेला, और
आज भी हूँ अकेला
बस तुम्हारा ही सहारा लिए
हुए जी रहा हूँ अब मैं यहाँ

कितनी भी उलझन क्यूं
न हो मेरे अंतर्मन में
तुम्ही तो उबार देते हो हो
राहत दे जाते हो इस मन में…

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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