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15 Mar 2017 · 3 min read

किस्सा--चन्द्रहास अनुक्रम--23

***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***

किस्सा–चन्द्रहास

अनुक्रम–23

वार्ता–सखी सहेलियां और नगरी की औरतें शादी के गीत गाती हैं। पूरे वातावरण में शहनाई की गूँज छा जाती है।

टेक-बनड़ी प्यारी हे प्यारा छैल बनड़ा।

१-माता जी की प्यारी दुलारी म्हारी बनड़ी,
पिता जी का प्यारा दुलारा छैल बनड़ा।

२-गंगाजल की झारी दुलारी म्हारी बनड़ी,
समुद्र की धारा हे प्यारा छैल बनड़ा।

३-फूल चमेली प्यारी दुलारी म्हारी बनड़ी,
कमल हजारा प्यारा दुलारा छैल बनड़ा,

दौड़–

करकैं प्रीत गावैं थी गीत,कुल की रीत को रही बढ़ा,
तेल उबटणा ल्याई आई,नायण और बांदी लई बुला,
चंद्रहास कै धोरै पहुंची जा करकैं न कह सुणा,

जा बैठ पाटड़ै इब तेरै हाम तेल चढ़ावांगी,
तूं जीजा हाम साळी सां तेरे लाड लडावांगी,

ब्याह मुकलावा टेम इसी हो सै रंग छटणे की,
आओ सखी मंगळ गाओ ना लाओ टेम उबटणे की,
ज्यान तलक ना नटणे की मांगै सो ल्यावांगी,

हाथ कांगणा पैर राखड़ी सिर मोड़ बंधा लिए,
फटका और कटारी ले विषिया नै ब्याह लिए,
थापां आगै चालिए उड़ै छन कुहावांगी,

तूं जीजा हाम साळी प्रेम कर म्हारे साथ मैं,
हँस हँस के नै बतळावां रस आवै बात मैं,
तेल उबटणा मळैं गात मैं फेर नुहावांगी,

ना माँ कर सकै इसी सासु स्यार करै,
छोटी साळी मतवाळी जीजे तैं प्यार करै,
श्री बेगराज प्रचार करै तनै चाल सुणावांगी।

नुंवाह धुवा कै चंद्रहास को एकदम दिया त्यार बणा,
चंद्रहास नैं कहण लगी थी सारी सखी सुणा सुणा,
फेरां उपर आ जाईये,चाव करकैं नैं लेवां बुला,

चंद्रहास तो छोड़ दिया फेर विषियां धोरै आई,
विषिया धोरै आ करकैं सारी बात बताई,
नुवाह धुवा कैं त्यार करी फेर विषिया बान बिठाई,
सखी सहेली कहण लागी तेरी होगी मन की चाही,
वेदी पर बैठे ब्राह्मण पास खड़या था नाई,

नौ ग्रह पूजन करवा कैं सप्तमातृका दई पूजा,
स्वर्ण की मूर्ती गडवा कैं सोने के दिए तार पूगा,
ब्राह्मण मंत्र बोलण लागे सुधा स्वाह कहैं स्वाह सुधा,

मदन कंवर को कहण लगे थे अपणे धोरै लिया बुला,
जितणा नामा लाणा हो तूं हँस हँस कैं दिए लगा,
ऐसा मौका फेर मिलै ना तेरी भाण का हो सै ब्याह,

ब्याह तो हो सै बन्ना बन्नी का लोग मजे लूटैं सैं,
पुष्प पतासे पड़ैं अधर तैं पायां तळै फूटैं सैं,
इतणे काम होयां पाछै तो कैदी भी छुटैं सैं,

परमेश्वर की कृपा तैं यो दिन आग्या सोळा,
उतर की तरफ धरे सुमेरु तप करता जहाँ भोळा,
कई किस्म की वेदी था रंग काळा पिळा धोळा,
पिस्ता दाख बदाम और मंगा लिया था गोळा,
दस आवैं दस चाले जां दस बठैं उठैं सैं,

आधी रात शिखर तैं ढळगी सारा कुणबा जागै,
कन्यादान होण लागै जब काैण दान तैं भागै,
पीछै पीछै बंनड़ी होगी वो बंनड़ा आगै आगै,
ओछी बनड़ी लाम्बा बंनड़ा सिर मांडे कै लागै,
पायां मैं पायल बाजैं जणु तारे से टूटैं सैं,

मारण खातर बुलवाया वो मन्त्री अन्यायी देखो,
कोण मार सकै जिसकी राम करै सहाई देखो,
चंद्रहास मन्त्री का बण गया था जमाई देखो,

दगा किसे का सगा नहीं जो कोय दगा कमावैगा,
जो काटैगा बेल और की खुद अपणी कटवावैगा,
साईं की दरगाह कै अन्दर बदल्या कहीं नहीं जावैगा,
जो कोय खाई खोदैगा तो उसनै झेरा पावैगा,

धोखे का बिछाया जाळ दुष्ट करता चाळा देखो,
कौन मार सकता जिसका राम रुखाळा देखो,
गंडे तैं गंडिरी मिट्ठी गुड़ तें मिट्ठा राळा देखो,
भाई तैं भतीजा प्यारा सबतैं प्यारा साळा देखो,
कहते कुंदनलाल रट परमेश्वर की माळा देखो।

४-तेराह साल प्यारी दुलारी म्हारी बनड़ी,
नंदलाल अठारा दुलारा छैल बनड़ा।

कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)

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