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20 Feb 2017 · 1 min read

गजल

गजल
कौन यादों में यूँ बसी सी है
क्यों निगाहों में खलबली सी है

चांदनी पूछती दरिंचो से
रात दुल्हन सी क्यों सजी सी है

रोक लेता पकड़ तिरा आंचल
पर मुहब्बत में कुछ कमी सी है

जानता भी नहीं मनाना मैं
और वो है कि बस रुठी सी है

आइना रख गया कुई सामने
आंख में फिर वही नमी सी है

हो रही हलचलें गुलिस्तां में
बेअदब इक हवा चली सी है

आप कहिए उसे सुनेगी वो
यार यूं दिल की वो भली सी है

कर न बंद खिड़कियां दिल की
धडकनें कुछ चली चली सी है
वंदना मोदी गोयल

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