Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
31 Jan 2017 · 1 min read

संघर्षों से लड़कर जीतती आयीं हैं बेटियां

जन्म से पहले, जन्म के बाद, जीवन पर्यंत
संघर्षों से लडती ही तो आयीं हैं बेटियां
जिस देश में मातृशक्ति की होती है पूजा
उसी देश में कोख को पाने को भी तरस जाती हैं बेटियां
जहाँ गंगा, यमुना जैसी बहती हों पावन नदियाँ
वहीँ कुकृत्यों के कीचड़ से मैली कर दी जाती हैं बेटियां
जहाँ गार्गी, अपाला,मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ हैं जन्मी
वहां शिक्षा पाने को भी तरस जाती हैं बेटियां
जहाँ शूरवीर साहसी झाँसी रानी की गाथाएं हैं गाई जाती
वहीँ अबला और बेचारी समझी जाती हैं बेटियां
घर समाज और राष्ट्र की जो सही अर्थों में नीव हैं
बोझ समझी जाती आयीं हैं यह बेटियाँ
कहीं माँ, बहन और कभी प्रियतमा बनकर प्रेम लुटाती है
वहीँ प्यार के दो बोल सुनने को भी तरस जाती हैं बेटियां
सर्व गुणों की खान जिनको समझा जाना चाहिए
तिरस्कार पूर्ण विशेषणों से अपमानित की जाती हैं ये बेटियां
जबकि जीवन की हर चुनौती को अपनी लगन गुणवत्ता तथा चातुर्य से
हर क्षेत्र में स्वयं को उजागर करती आयी हैं बेटियां
समाज के तिरस्कार से कभी अपनों की ही धिक्कार से
कुछ अधिक निखर कर सम्मान पा रहीं हैं ये बेटियाँ
चाहे कितनी ही अवांछित हों, तिरस्कृत हों या पीड़ित हों
हर ज़ुल्म से निपटकर विजय पताका लहरा रहीं हैं ये बेटियां

Loading...