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24 Jan 2017 · 2 min read

बचपन

……………बचपन………
कुछ बचा ही नहीं था करने के लिये,फेसबुक और इन्सटा की नोटिफिकेशन भी बेदम मालूम पड़ रही थी, तभी मेरी नजर एक लड़के पर पड़ी, यही कोई बारह या तेरह साल उम्र रही होगी उसकी! कंधो पर नीले रंग का बैग उसकी मदमस्त चाल के साथ हिलोरे खा रहा था! चेहरे पर छुट्टी की खुशी साफ झलक रही थी!
शायद किसी जल्दी में था! प्रतीत हो रहा था कि ‘पेट में चूहे कूद रहे’ होंगे! उधर मम्मी ने मनपसन्द खाना तैयार कर दिया होगा और दीवार पर टंगी घड़ी की सूईयो को निहारना शुरू कर दिया होगा!
पैंट की बैल्ट और शर्ट के बटन तो गली में घुसते ही खुलने शुरू हो गये थे! बैग चारपाई के उस कोने में फेंका तो यूनीफोर्म पास ही पड़ी लकड़ी की कुर्सी पर,खाने की खुशबू ने भूख को ओर तेज कर दिया होगा! खाने के बीच में ही पुनित और राजदीप ने आवाज लगा दी होगी, फिर क्या था खाना मानो बुलेट ट्रेन की तीव्र गति से खाया होगा और काफी मात्रा में थाली में ही छोड दिया होगा,मम्मी ने जब तक नाम पुकारकर अवाज लगायी होगी तब तक तो जनाब बैट और बाल लेक़र मैदान में पहुंच चुके होंगे!
कल्पनाओ में ही सही,फिर भी मुझे महसूस हुआ के एक बार फिर से ज़िन्दगी के सर्वश्रेष्ट दौर को करीब से जिया है ! इतना आनन्द ना तो डोमिनोस के पिज्जा में मिला ओर ना ही सी.सी.ड़ी की कोफी में जितनी मुस्कान ये बचपन की मीठी-मीठी बचकाना सी यादें दे गयी ज़िनमे न तो ज़िम्मेदारियो का बोझ था ओर न ही उत्तरदायी होने का ड़र!
बस इसी सोच ने पूरे बचपन की अविस्मरणीय यात्रा करा दी, काश! कोई उस बचपन को फिर से लौटा दे और माथे की सिकुडन को हमेशा के लिये समाप्त कर दे!

……GPS….!!!!!!!

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