ओ काली घटा (गीत)
ओ काली घटा मेरे आँगन आ
तू मेरी सहेली बन जा रे !
है सूखी धरती, प्यासी धरती
धरती सूख कर हो गयी परती
इस परती में रिमझिम-रिमझिम
प्यार के आँसू बरसा जा रे !
नदियाँ सूखी, प्यासे झरने
सूख रहे सब तृण-तृण हैं
झुलस रहीं खेतों में फसलें
पशु, जन, खग सब क्रंदन हैं
अपने मृदु वाणी से, हे सखि !
क्रंदन को गुंजन कर जा रे !!
सब बाल सखा मिल खेल रहे
हैं, काच-कचौटी कीचड़ में
सखियाँ कजरी गा रही हैं-
डगर-डगर घर आँगन में
इन मुरझाये सूखे होठों पर
खुशियों के गीत बिछा जा रे !