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9 Jan 2017 · 2 min read

क्या पाया , क्या खोया ☀☀☀☀☀☀☀☀

क्या पाया , क्या खोया
☀☀☀☀☀☀☀☀

नयी साल आ गई , पुरानी बाय करने लगी
सोचा जरा अतीत के झरोखों से झाँक आऊँ
जब झाँका तो अतीत मेरा सामने खडा था
खोल कर मेरे कर्मों का चिट्ठा दिखा रहा था
पर हे प्रभु मैं दास परिस्थितियों की
सब तुझको अर्पण करती हूँ ————-

क्या पाया खोया कोन रूठा किसको मनाया
मन भारी हो गया और कुछ द्रवित भी हो गया
कहीँ मेरी सपाट बयानी झलकती हर पल
कहीं मेरी कटु कुटिलता भी दीख पड़ती
पर हे प्रभु मैं दास परिस्थितियों की
सब तुझको अर्पण करती हूँ ——————-

मन ने भी कसर छोड़ी गुमराह करने में मुझको
पर इच्छा दमन का कोड़ा भी खूब दिया
छोड़ इसकी उसकी करना हर पल ही मैं
मार्ग सच्चाई के क्षण प्रतिपल चलती रही मैं
हे प्रभु जाने अनजाने में जो गुस्ताखी की मैने
प्रभु मुझको क्षमा सदा ही करना —————–

राह के पत्थरों ने कुचला पर मैं चुप रहीं
आत्मसम्बल प्रभु का ढाल बन रक्षक था
कहीँ भटकन ने छुआ राह में हर पल
लेकिन आत्मविश्वास की पूँजी ही मेरी मात्र धरोहर थी
आशीष था परम पूजनीय गुरूवरों का मुझ पे
पग – पग पर जो पर्वतासा अटल बनाता था ——–

सीख मिली पुरानी ठोकरों से हुआ जब हृदय विदीर्ण
छोड़ माफ किया दुष्टों को जैसी करनी वैसी भरनी
जीवन भी एक टीचर है जो लर्निंग हर पल देता
मित्र भी माल में जड़े हीरक सी दिव्य राह दिखाते
शुक्रिया थैंक बहुत छोटे शब्द है अर्पित करने को
हे प्रभु ऋणी हूँ मैं सदा -सदा तेरी शरण में———

डॉ मधु त्रिवेदी
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