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2 Jan 2017 · 1 min read

गजल

गजल
बहर १२२२/१२२२/१२२२/१२२२
काफिया आ
रदीफ नही होता
मतला
खबर उसको अगर होती कभी पर्दा नहीं होता
निगाहों में उतरता चॉद ये शिकवा नहीं होता

उजाले रास आये ही नहीं किससे करें शिकवा
हमें मालुम वो देगा दर्द ,पछतावा नहीं होता

मुहब्बत ने कहॉ लाकर मुझे छोडा ,कभी देखो
भला होता किसी ने कर वादा तोडा नही होता

खुदाया नाम तख्ती पर अगर मॉ का,बताता भी
रुलाया रात भर उसको ,उसे धोखा नही होता

कहॉ करता भरोसा वो मिरी बातों का कहने से
कि पॉवों में अगर मेरे फुटा छाला नहीं होता

उठाती रोज उम्मीदें दरिंचों से मिरे चिलमन
कभी गलियों में मेरी पर उसे आना नही होता

कि खुलने दे कभी ये खिडकियॉ तेरे मिरे दरमयँ
मिजाजे तल्खियों को पालना अच्छा नहीं होता

कभी मॉ तो कभी बेटी समायी है निगाहो में
रईसों का यकीनन शर्म से वास्ता नही होता
वंदना मोदी गोयल

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