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29 Dec 2016 · 1 min read

काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

कक्षा की खिड़की से बाहर मैंने आज
उसे खड़े देखा कुछ परेशान सा
चेहरा था वो कुछ अनजान सा
कुछ खोजता हुआ, उधेड़बुन में लगा
वो चेहरा जो सारे ग़म भुला दे
काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

दिन बीत गए कई उसे देखे बिना
आज वो दिखी एक बस स्टॉप पे
और मैं उस चेहरे को तकता रहा
वो चेहरा गुलाबों सा गुलाबी
वो चेहरा जो सारे ग़म भुला दे
काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

आज मुझे देख वो मुस्कुराई
हल्की सी आवाज़ में उसने
मुझे आवाज़ लगाई
उस दिन हमने साथ में सफ़र किया
वो कुछ कहती रही, और मैं सुनता रहा
दिन ऐसा जो सारे ग़म भुला दे
काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

दिन गुज़रते गए, अब हम दोस्त बन गए
वक़्त गुज़रता रहा, हम साथ चलते रहे
मैं बस उसकी आवाज़ सुनना चाहता
वो चिड़िया सी प्यारी चहचहाट
आवाज़ वो जो सारे ग़म भुला दे
काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

आज वो ये शहर छोड़ कर जा रही है
उसकी क़िस्मत उसे कहीं और बुला रही है
मैं मौन खड़ा हूँ अपने जज़्बात दबाये हुए
आंसुओं को आँखों में छिपाये हुए
क्योंकि वो जानती नहीं थी पर
वही तो थी वो लड़की जो सारे ग़म भुला दे
काश मैं उसे फिर देख पाऊँ

— प्रतीक

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