Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Dec 2016 · 1 min read

जिंदगी का वो अपनी नज़राना लिए फिरता है

जिंदगी का वो अपनी नज़राना लिए फिरता है
नज़रानों में हसरत-ए-मयख़ाना लिए फिरता है

लबों पे तेरे आकर हर बात ग़ज़ल लगती है
वर्ना कितने ही लफ्ज़ ये ज़माना लिए फिरता है

बहुत कुछ पाने के बाद भी कुछ और बाक़ी है
दिल-ए-इनसां अजीब सा पैमाना लिए फिरता है

तू मुस्कुराए तो दिल मिरा फूल सा खिल जाए
वर्ना कितने फूल हर दीवाना लिए फिरता है

दिल की शमाँ जले गर तू निगाह भर के देख ले
आँखों में कितना नशा परवाना लिए फिरता है

देना तवज्जो गर मेरी नज़रों में वफ़ाएँ है
वर्ना मोहब्बत कहाँ कोई बेगाना लिए फिरता है

कौन सुने तेरी दास्ताँ ‘सरु’दुनियाँ-ए-महफ़िल में
हर कोई जहाँ अपना ही अफ़साना लिए फिरता है

Loading...