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11 Dec 2016 · 1 min read

दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये

दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये
हम अपने दर्द छिपाकर मुस्कुराना जान गये

तमन्ना थी चाँद तारों में हो अपना भी हिस्सा
जहाँ-ए-हकिक़त में मुफ़लिस का ख़ज़ाना जान गये

बनते- बिगड़ते रिश्ते सोते –जागते सपनों में
टिमटिमाते चिराग़ हाये वीराना जान गये

नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है
बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये

बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है
हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये

हम आलम-ए-हयात में ढूँढते हैं दर्द-मंदों को
इस बहाने लोगों से मिलना- मिलाना जान गये

राज़-ए-ज़िंदगी मजबूरियों ने समझाया है ‘सरु’ को
क़िताबों में छपा हर ईक़ फ़साना जान गये

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