मुक्तक: हर सुबह एक नई प्यास: जितेंद्रकमलआनंद( पोस्ट१६२)
हर सुबह एक नई आस लिए होती है ।
हर दोपहर अमिट प्यास लिए होती है ।
डूब जाता हूँ याद की तन्हाईयों में —
चॉदनी रात जब मधुहास लिए होती है। ।
—- जितेन्द्र कमल आनंद
२-१२-१६ सॉई विहार कालोनी , रामपुर( उ प्र)