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24 Nov 2016 · 1 min read

अपनी जमीं पर.....

आसमां-सा ऊँचा उठकर
झिलमिल सपनों में खो जाऊँ !
अपनों की ही आर्त पुकार
एक बधिर वत् सुन न पाऊँ !

सागर – सी गहराई पाकर
अपने सुख में डूबूँ उतराऊँ !
गम में किसी के गमगीं होकर
आँसू भी दो बहा न पाऊँ !
तो-
नहीं चाहिए ऐसी उच्चता
और न ऐसी गहराई !
इससे तो मैं बेहतर हूँ
अपनी जमीं पर रहकर ही !

अपनी जमीं पर अपनों के सँग
सुख – दुख मिलकर बाटूँ !
पनप रही जो बैर की खाई
प्यार से उसको पाटूँ !

– डॉ० सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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