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21 Nov 2016 · 1 min read

यूँ सूरज की शान बहुत है

© बसंत कुमार शर्मा

यूँ सूरज की शान बहुत है
मगर दिए का मान बहुत है

प्रेम हृदय में उपजाने को
पल भर की पहचान बहुत है

तपती धरती पर बारिश की
दो बूंदों का दान बहुत है

भले न हम हों विदुर सरीखे
सही गलत का ज्ञान बहुत है

नहीं जरूरी राम बनें सब
बन जाना इंसान बहुत है

हो अपने पंखों के दम पर
छोटी एक उड़ान बहुत है

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