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29 May 2016 · 1 min read

न ज़िन्दगी से हम थे हारे

मापनी – २२ २२ २२ २२
पदपादाकुलक छंद

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न ज़िन्दगी से हम थे हारे
दूर हुए हों भले किनारे

भूख से तड़फते बच्चे वो ।
दर दर फिरते मारे मारे ।।

धूप हुई आज तेज़ इतनी ।
छाँव ढूंढते रहते सारे ।।

घूमते रहे आस पास ही
माँ के बच्चे प्यारे प्यारे ।।

बच्चे हो माँ के कैसे भी !
है माँ की आँखों के तारे !!

सज धज कर बैठी है सजनी
घर आएंगे बालम न्यारे ।।

पढ़ना होती अच्छी आदत !
ये लेखन भी खूब निखारे ।।

** आलोक मित्तल उदित **
** रायपुर **

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