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22 Oct 2016 · 1 min read

गज़ल

सभी राज हमसे छिपाए हुए हैं
कभी जो थे अपने पराए हुए हैं

लबों पे हमारे हंसी तुम ना देखो जमाने से’ हम चोट खाए हुए हैं

भले वो न चाहें हमें भूलके भी मगर नाज उनके उठाए हुए हैं

न आवाज कोई न कोई इशारा
न जाने कहां दिल लगाए हुए हैं

खबर क्या उन्हें हम उन्हीं पे फिद़ा हैं कहानी गज़ल में बताए हुए हैं

वही ‘श्रेष्ठ’ दिलवर जिन्हें चाहता हो रहें साथ जो प्यार पाए हुए हैं

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