जयबालाजी:: भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से :: जितेंद्रकमलआनंद (४१)
ताटंक छंद:
भक्ति दृगों से नहीं , ह्रदयसे देखी- समझी जाती है ।
भक्ति विकलके पोछे ऑसू, भक्ति स्वर्ग कहलाती है
भक्ति गीत है, भक्ति मीत है , प्रेम पंथ है उजियाला,
नीराजन है, आराधन है , भक्ति कमल, दीपक, बाला!!
—– जितेंद्रकमलआनंद