Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Oct 2016 · 8 min read

‘ जो गोपी मधु बन गयीं ‘ [ दोहा-शतक ] + रमेशराज

जो बोलै दो हे! हरी अति मधु रस अविराम
शहद-भरे दोहे हरी! उस राधा के नाम। 1

यही चाँदनी रात में खेल चले अविराम
राधा मोहें श्याम कूं, राधा मोहें श्याम। 2

जग जाहिर है आपका ‘मोहन-मधु कर’ नाम
मन काहू के तुम बसौ मन का? हूके श्याम। 3

भये एक का प्रेम में, भूले सुधि बुधि नाम
राधा , राधा बोलती, श्याम पुकारें श्याम। 4

करुँ प्रतीक्षा आपकी हुई सुबह से शाम
काजल, का? जल बीच ही और बहैगौ श्याम? 5

प्रेम-रोग तोकूँ लगौ अबहि मिले आराम
मन में लीनौ पीस कल, दवा पी सकल श्याम। 6

लखि राधा का रूप नव हँसकर बोले श्याम
‘तेरे तौ ऐनक चढ़ी, ऐ नकचढ़ी सलाम’। 7

कान्हा से मिल सुन सखी जब लौटी कल शाम
का बोलूँ जा जगत की, मैं जग तकी तमाम। 8

मनमानी अब ना करें मैं मन मानी श्याम
सिद्धि पा रखी श्याम पर, बड़े पारखी श्याम। 9

जब देखौ तब रटत हैं ‘राधा -राधा ’ नाम
कस्तूरी-मृग से भये, कस तू री! वे श्याम। 10

ऐसे बोले विहँसकर वहाँ सखी री श्याम
जो गोपी मधु बन गयीं, मधु बन गयीं तमाम। 11

बोली नन्द किशोर से ‘खबरदार इत आ न’
मैं काफिर, का? फिर हँसी, श्याम गये पहचान। 12

तन का, मन का अब सखी सुन सिंगार होना न
इसीलिये सोना न अब, हरि जैसा सोना न। 13

राधे मत लग वान-सी, यूँ काजल लगवा न
घायल मन मेरौ करै, मन्द-मन्द मुस्कान। 14

हरि बोले तू चंचला, मधुजा, रस की खान
सखि रति के उनवान पर करुँ निछावर प्रान। 15

मैं लेकर साबुन गयी जमुना-घाट नहान
प्रेम-जाल-सा बुन गयी मोहन की मुस्कान। 16

करें कृपा नैना तनिक नैनों को समझा न!
चितवन, चित बन कर लगै जैसे कोई वान। 17

बोल सदा तू प्रेम के बोल सके तो बोल
अपने मतलब के लिये, मत लब राधे खोल। 18

हम अरहर के खेत हैं खुशी न आज टटोल
बरसे पाला-कोहरा, दिखे को? हरा बोल। 19

मीठै बैना बोलि कैं इत मधु रह्यौ टटोल
कान्हा जैसे मधुप री ! मैं मधु परी अमोल। 20

करौ इशारौ श्याम ने, ली मैं पास बुलाय
करतब, करि कर तब गये तन से दिये छुबाय। 21

इन्द्रधनुष-सी बाँसुरी हरि के अधर सुहाय
मटके पर मटके हरी मटके नारि बजाय। 22

बोल बाँसुरी के मधुर हमकूँ अगर सुनाय
बिना भरे गागर भरे, कान्हा गा गर जाय। 23

राधा सूखै रेत-सी, नागर, ना गर आय
मिलै नदी-सी श्याम से, सागर-सा गर पाय। 24

आयी थी राधा इधर दूंगी श्याम बताय
हरि तेरे इत ना सखी, मत इतना हरषाय। 25

लगा ठहाके दाद दे कान्हा मन मुस्काय
इत राधा दो हा कहै उत हा-हा बन जाय। 26

हरि-सा धन सखि का मिलौ, मन से साध न जाय
बढ़ी पीर में, पी रमें प्राण और हरषाय। 27

सखी श्याम मैं का? गही, चित कूँ मिलनौ भाय
मन की बात मुँडेर पै कहै काग ही आय। 28

तरसूँ मीठे बोल को दिखें श्याम इस बार
रसना से रस ना मिलै तन न होय झंकार। 29

पल में जलते दीप की दुश्मन बनी बयार
जहाँ नहीं दीवार थी बाती उत दी वार। 30

मिलने से ज्यादा विरह दे मन को झंकार
अग्र नहीं ‘अनु’, सार है बढ़ी प्रीति अनुसार। 31

इत चमकी है बीजुरी यहीं गिरी है गाज
मनमोहन को वेद ना, यही वेदना आज। 32

बात छुपाऊँ , मन घुटै, अगर बताऊँ लाज
कल मन की कल खो गयी, मिली न कल, कल-आज। 33

जो सुखदा, सुख-सम्पदा, जिसके मोहक साज
एक नदी बहती जहाँ, एक न दी आवाज़। 34

आज मिलें हर हाल में जिन लीनौ हर हाल
मन से नमन उन्हें करूँ जिन्हें न मन कौ ख्याल। 35

जहँ पराग जहँ मधुर मधु जहँ विकास हर काल
सूख गये वे ताल क्यों आज कहो वेताल। 36

मैली नथ खींची तुरत औरु दयी नव डाल
सखि हँसकर बिन दी हमें, वो ही बिन्दी भाल। 37

बौर प्रेम कौ जहँ नहीं और न फलें रसाल
आ री!, आरी ला सखी काट दऊँ वह डाल। 38

नीबू-अदरक की तरह भले प्यार तू डाल
तेरे पास न हींग है, नहीं गहै हरि दाल। 39

राधा झूला झूलती जहँ अमुआ की डाल
आहों से पा मुक्ति तहँ आ होंसे नंदलाल। 40

मैं खुशबू देती नहीं यह आरोप न पाल
मुझको हरि आ रोप तू, ज्यों गुलाब की डाल। 41

बौरायी-सी तू लगै ज्यों अमुआ की डाल
अरी कोमला!, को? मला तेरे गाल गुलाल। 42

सखि मेरे मन बढ़ गयी मादकता-मधु -प्यास
इत आया बद मास था उत आया बदमास। 43

मोहन मेरे पास हैं, मैं मोहन के पास
मन में घनी सुवास सखि, मोहन करें सुवास। 44

यहँ मुरली प्यारी बजै, भली पिया के पास
नहीं तान गर, ता नगर तौ क्यों चलूँ सहास। 45

आँखिन-आँखिन में गये मन को श्याम भिगोय
राधा मन में लाज भरि सहमत, सहमत होय। 46

बाँहिनु-बाँहिनु डालकर अरी झुलाऊँ तोय
इत झूले तू डाल ना! उधर डाल ना कोय। 47

बहुत उनींदी आँख हैं मुख धोवन दै मोय
कैसे जाऊँ जगत ही, जगत हँसाई होय। 48

गाय मल्हारें प्रेम की कान्हा झोटा दीन
ग़जब भयौ उत री सखी! चढि़ झूला उतरी न। 49

पत्र लिखौ जो श्याम कूँ लियौ ननद ने छीन
मो पै सखि कालिख लगी, मैंने का? लिख दीन। 50

मेरे मन की श्याम ने पीड़ा लखी, लखी न
मैं आहत जित हीन थी फाह रखौ उत ही न। 51

मन बौरायौ-सौ फिरै मेरी अब चलती न
प्रेम कियौ गलती करी, घनी पीर गलती न। 52

अब सर ही मेरौ फटै रति को अबसर ही न
रोग जान का री सखी! उन्हें जानकारी न। 53

प्रियतम को प्रिय तम लगे, करे न दिन में बात
मीठे बोलै बोल तब, जब गहरावै रात। 54

मैंने देखी श्याम की चीते जैसी घात
हरिना-से हरि ना सखी, बोल न ऐसी बात। 55

का कीनौ उत्पात जो मसले-से उत पात
अरे देबता, दे बता कहा भयौ बा रात। 56

गजब भयौ बा रात में, जबहिं चढ़ी बारात
कान्हा फेरे लै गयौ नाचत में सँग सात। 57

‘‘प्रेम-अगन में मैं जलूं बिन राधा दिन-रात’’
काफिर ने का? फिर कही सखि तुझसे ये बात? 58

दहूँ, कहूँ ना चैन अब, तन-मन भये अधीर
कैसा सखी मज़ाक है, मज़ा कहै तू पीर? 59

नैननु पे नैनानु के चले रात-भर तीर
सखि लायी में रात भर, इन नैननु में नीर। 60

मिलें श्याम या ना मिलें खुशी बँधी तकदीर
इतनी की है प्रीति सखि, इत नीकी है पीर। 61

यूँ वियोग कितना लिखा और सखी तकदीर
प्रेम लगा अब महँकने, दयी महँक ने पीर। 62

रात-रात-भर जागकर इत ही झाँकें लोग
घटना से घटना भला सखी प्रेम का रोग। 63

मिले खुशी में अति खुशी, बिछडि़ रोग में रोग
सखि ऐसे सह योग को, कौन करे सहयोग। 64

मैंने कीनौ श्याम-सँग रति का विष-सम भोग
मन में दर्द नये न ये, बहुत पुराना रोग। 65

मैं तो सखि चुपचाप थी मन में दर्द न ताप
जाने कब हरि का लगा तीर रखा चुप चाप। 66

प्रीति-प्यार में देखिए कागज, का? गज नाप
ढाई आखर प्रेम का पढि़ लीजे चुपचाप। 67

आँखें मेरी नम न थीं और न मन में ताप
पाया शोक अथाह अब, प्रीति बनी अभिषाप। 68

पूजा को मंदिर गयी, मैं थी प्रेम-विभोर
परिसर में परि सर गये सखि री नंदकिशोर। 69

मेरे ही अब प्राण ये रहे न मेरी ओर
सखि मैं अब के शव भयी बँधि केशव की डोर। 70

श्याम न आये आज सखि, आबन लगौ अँधेर
कागा का? गा कर कही भोरहिं बैठि मुँडेर। 71

सिर्फ उबालै दूध तू पड़ी खीर के फेर
समाधान ये है सखी, समा धान कछु गेर। 72

पाती में पाती नहीं, पाती, पाती फेर
वे मधुकर हैं आज मन शंकाएँ-अंधेर। 73

मन के सारे खेत हैं सूने बिना सुहाग
अब को ला हल देत है, बस कोलाहल भाग। 74

खिले फूल-सी जिन्दगी, नवरंगों के राग
श्याम दियौ दिल बाग में, तब ही से दिल बाग। 75

बोल न ऐसे झूठ तू, गये विदेश सुहाग
सखि क्यों बरसाने लगी, बरसाने में आग। 76

अब न तरेरैं श्याम भौं, अब मटकावै भौंन
मन तौ राधे सू रमा, कहै सूरमा कौन। 77

मोहि रीझि मुसका सखी श्याम आज देखौ न
हमला वर पर हो गया, हमलावर पर कौन ? 78

गिरूँ, घिरूँ मैं लाज में, आऊँगी बातों न
दूँगी अब में श्याम के कर में, कर मैं यों न। 79

जब से मिलि घनश्याम से लौटी अपने गाँव
धरती पर धरती कहाँ राधा अपने पाँव। 80

राधा जो वन जाय तो महके जोवन पाय
बढ़ती आभा फूल की जितना मधुप चुराय। 81

मुस्कानें डाँटें डपट, कोप कपट मन भाय
प्रेम-भरे अनुभाव की हरषै हर शै पाय। 82

रात भयी अब मैं चलूँ, लेना कभी बुलाय
ऐसे कसम न दे मुझे जो कस मन ये जाय। 83

बात बुरी भी प्रेम में हरि के मन को भाय
कान्हा को ‘काना’ कहै राधा अति हरषाय। 84

रति का गया घनत्व बढि़ तनिक सहारे पाय
दर्द आज अलगाव का नहीं सहा रे! जाय। 85

यूँ न टोक री! बाय जो लिये टोकरी जाय
इसी बहाने गुल चुनै, मिलें श्याम हरषाय। 86

मन में जलें चराग-से, दिपै प्रीति की लोय
मिलकर पा रस री सखी कंचन काया होय। 87

सखी बता कान्हा कह्यौ का री! कारी मोय?
‘नहीं कहा ऐसे सखी, बोल्यौ कोयल तोय’। 88

बात-बात में यमक है सुन रे कान्हा बात
तोकूँ राधा यम कहै मन्द-मन्द मुस्कात। 89

एक बार तो आ गले मिलि मोसे तू पीय
भले पीर फिर मन भरै, जरै आग ले हीय। 90

इत कान्हा पाती लिखी-‘मिलने आऊँ मैं न’
पा उत्तर, उत तर हुए दो कजरारे नैन। 91

बिना पिया नैननु भरी अब तो पीर अथाह
ताकत, ताकत में गयी सूनी-सूनी राह। 92

बिना बजे ही बज रही मन में मधुर मृदंग
को री! कोरी चूनरी डालौ ऐसौ रंग। 93

सुनि री सखि मैं ना मरी लेत नाम री श्याम
यति-गति-लय छूटी, मिले सुख को पूर्ण विराम। 94

छूबत ही जाऊँ बिखरि छूत मत मोहि निहारि
मैं तो जैसे ओस नम, सुन ओ सनम मुरारि। 95

मिलि हरि सौं ऐसौ लगै आयी तन को हारि
अब उठती मन हूक-सी, मनहू कसी मुरारि। 96

मेरा जी है श्याम में, राजी सौत मुरारि
देति निगोड़ी बाँसुरी मन को रोज पजारि। 97

घने तिमिर में आ गये कान्हा बनकर नूर
साँसों की सरगम बजी, सर गम से अब दूर। 98

भयी प्रफुल्लित देख हरि, लोकलाज-डर दूर
कायम, का? यम की रहें अब शंकाएँ क्रूर। 99

मिली श्याम से, मैं गयी अपनी सुधि -बुधि भूल
सरकी, सर की चूनरी, सरके सर के फूल। 100

बिना श्याम फीकौ परौ तन कौ-मन कौ ओज
मैं अबला, अब ला सखी कोई औषधि खोज। 101

मन को सूखा देखकर राधा करी अपील
इधर आब ना, आ बना दरिया-पोखर-झील। 102

कुम्हलाये या नित जले, चाहे जाये रीत
देती है फिर भी तरी, बसी भीतरी प्रीत। 103

हँसी-खुशी तक ले गये हरि राधा की लूट
देख पीय ना, पीय ना जल के हू दो घूँट। 104

ओ मेरे मन बावरे काहे भगै विदेश
मिलता-जुलता देश जो, मिल ता जुल ता देश। 105

आँखिनु-आँखिनु में हरा, आँखिनु-आँखिनु तोड़
ना रे बाजी जीत लै, नारेबाजी छोड़। 106

खेल-खेल में खेल मैं गयी अनौखे खेल
बहुत सखी धुक-धुक करै दो डिब्बों की रेल। 107

वाण चलाये बा! हरी! यूँ नैननु की ओट
भीतर तक अब पीर दे बहुत बाहरी चोट। 108

मोहन के मन में करै घनी प्रीति घुसपैठि
राधा केसर-सी भयी कान्हा के सर बैठि। 109

टीसों के अनुप्रास हैं साँसों के संवाद
डाली है बुनि याद ने सखि कैसी बुनियाद। 110

पहले तो सुधि -बुधि गयी, अब रूठौ है चैन
मिलें अधिकतर, अधिक तर सखि अपने ये नैन। 111

दीप कभी रख दे हरी!, खींच ज्योति की रेख
मन की सूनी देहरी रहे न सूनी देख। 112

भयी सखी हरि-प्रेम में सबसे बड़ी अमीर
छू मन तर ऐसौ कियौ छूमन्तर है पीर। 113

जायदाद मन की लिखूँ जो मन कियौ प्रसून
आय दाद लै जाय वो, जाय दाद मैं दूँ न। 114

तू मुझको भूले नहीं, मैं तुझको भूलूँ न
खुशी-खुशी उर दून कर वर्ना मैं उर दू न। 115

इन कुंजन हरि-प्रेम को भूलूँगी कबहू न
जी वन में ऐसी खुशी जीवन बना प्रसून। 116

अतिगर्जन, घन, बीजुरी, कुछ भी रहा न ध्यान
भीग गयी छत री सखी तो ली छतरी तान। 117

चिन्ता मोहि बुखार में तपै न तेरे प्रान
क्यों भीगी छत री सखी, लेती छतरी तान। 118

मेरौ मन मधु रस भरौ अति अद्भुत अनमोल
तन की मत आँकै हरी!, मन की कीमत बोल। 119

कबहू आँखें बन्द रखि, कब हू आँखें खोल
करै कीर्तन कीर-तन राधे -राधे बोल। 120

चीख करूँ अति नाद मैं या देखूँ चुप नाद
‘खल’ को तू स्पष्ट करि सखि इतनी फरियाद। 121
+रमेशराज
————————————————————–
+ रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630

Language: Hindi
2277 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

चंद शब्दों से नारी के विशाल अहमियत
चंद शब्दों से नारी के विशाल अहमियत
manorath maharaj
जितना आपके पास उपस्थित हैं
जितना आपके पास उपस्थित हैं
Aarti sirsat
साहिल पर खड़े खड़े हमने शाम कर दी।
साहिल पर खड़े खड़े हमने शाम कर दी।
Sahil Ahmad
किशोरावस्था मे मनोभाव
किशोरावस्था मे मनोभाव
ललकार भारद्वाज
🍀🪷🙌 Go for a walk
🍀🪷🙌 Go for a walk
पूर्वार्थ
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सिपाही
सिपाही
Neeraj Agarwal
कितनी    बेचैनियां    सताती    हैं,
कितनी बेचैनियां सताती हैं,
Dr fauzia Naseem shad
इल्जामों के घोडे
इल्जामों के घोडे
Kshma Urmila
पितृ तर्पण
पितृ तर्पण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
"फेड्डल और अव्वल"
Dr. Kishan tandon kranti
अंबर
अंबर
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
गुमनाम
गुमनाम
Rambali Mishra
*आख़िर कब तक?*
*आख़िर कब तक?*
Pallavi Mishra
* रंग गुलाल अबीर *
* रंग गुलाल अबीर *
surenderpal vaidya
*शिवोहम्*
*शिवोहम्* "" ( *ॐ नमः शिवायः* )
सुनीलानंद महंत
जो दूरियां हैं दिल की छिपाओगे कब तलक।
जो दूरियां हैं दिल की छिपाओगे कब तलक।
सत्य कुमार प्रेमी
बांदरो
बांदरो
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
क्या कर लेगा कोई तुम्हारा....
क्या कर लेगा कोई तुम्हारा....
Suryakant Dwivedi
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*जाते साधक ध्यान में (कुंडलिया)*
*जाते साधक ध्यान में (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
दहलीज़
दहलीज़
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
4236.💐 *पूर्णिका* 💐
4236.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
■ कृष्ण_पक्ष
■ कृष्ण_पक्ष
*प्रणय*
महान व्यक्तित्व
महान व्यक्तित्व
pratibha Dwivedi urf muskan Sagar Madhya Pradesh
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
Manoj Mahato
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मधुमास में बृंदावन
मधुमास में बृंदावन
Anamika Tiwari 'annpurna '
खोज सत्य की
खोज सत्य की
महेश चन्द्र त्रिपाठी
जिंदगी के तराने
जिंदगी के तराने
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...