पंडित श्रीराम तिवारी (जीवनी)
पंडित श्रीराम तिवारी (जन्म 1894)-पंडित श्रीराम तिवारी (1894)- का जन्म ग्राम- हिरनगऊ तहसील फिरोजाबाद जनपद आगरा (वर्तमान राजस्व ग्राम- हिरनगाँव जनपद फिरोजाबाद) उत्तर-पश्चिमी प्रान्त (वर्तमान -उत्तर प्रदेश ) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता का नाम पंडित खुशालीराम तिवारी व माता का नाम श्रीमती केसरि तिवारी था भाइयों का नाम बद्रीप्रसाद तिवारी, उमाशंकर तिवारी एवं बहनों का नाम रुक्मणी तिवारी, रूपनिशा उर्फ रूपा तिवारी, दुलारो तिवारी, बैकुंठी तिवारी था
बचपन से ही यह अपनी माता को बहुत प्रेम करते थे पिता द्वारा इनका दाखिला वर्ष 1901 मैं ग्राम की पाठशाला में करवा दिया परंतु इनका मन पाठशाला में नहीं लगता था इस कारण यह कई दिन पाठशाला में नहीं जाते थे अध्यापक द्वारा इनके गैरहाजिर रहने पर 31 जुलाई 1903 दिन शुक्रवार को इनको पाठशाला से निकाल दिया पिता की गुजारिश पर इनका फिर से पाठशाला में दाखिला कर लिया गया एक दिन ग्राम की पाठशाला के अध्यापक द्वारा एक बच्चे को बिना किसी जुर्म के दंड दिया जा रहा था इनके द्वारा यह अन्याय होता नहीं देखा गया और अध्यापक से जुबान चलाने लगे इस कारण अध्यापक ने जुबान चलाने पर इनका नाम पुनः 30 अप्रैल 1910 दिन शनिवार को विद्यालय से काट दिया जब यह अपने घर वापस आए तो घर पर पूरा वृतांत अपने माता पिता को बताया पिताजी द्वारा इनको समझाया गया कि बेटा अध्यापक से जुबान नहीं चलाते अगले दिन पिता के साथ पाठशाला में गए पिता ने अध्यापक से पुनः दाखिला करने का अनुरोध किया अध्यापक द्वारा पिता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पाठशाला में फिर से नाम लिख दिया
पंडित श्रीराम तिवारी अपने भाइयों में सबसे बड़े थे सबसे बड़े होने के कारण इनके ऊपर घर परिवार की भी जिम्मेदारी का उत्तर दायित्व था अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए यह 16 वर्ष की आयु में 30 नवंबर 1910 दिन बुधवार को ग्राम की पाठशाला (हिरनगाँव) से नाम कटवा कर अपने ग्राम को छोड़कर अपने पिताजी के साथ कलकत्ता नौकरी करने चले गए कलकत्ता जाकर इनको जमादार की नौकरी मिल गई और वहांं नौकरी करने लगे यह प्रतिदिन सुबह उठकर अपने काम पर जाते और शाम होते ही अपने कमरे पर वापस आ जाते परंतु इनको अपने परिवार की याद आती थी कि मेरा परिवार किस तरह ग्राम में रह रहा होगा और मेरी याद भी करता होगा यही सोच विचार कर वह सो जाते नौकरी पर इनके कुछ मित्र भी बन गए काम करने के बाद कुछ खाली समय मिलता था तब सभी व्यक्ति अपने अपने घर परिवार की बातें करते थे जब इनको काम के बदले में जो धनराशि मिलती थी उस धनराशि से अपने परिवार के लिए कलकत्ता से सामान खरीद कर अपने परिवार के पास बिल्टी कर भेज देते यहां पर परिवार के व्यक्ति भेजे गए सामान को ले आते पंडित श्रीराम तिवारी से कुछ माह पहले छोटे भाई बद्रीप्रसाद तिवारी कलकत्ता नौकरी पर पिताजी के साथ चले गए परंतु कुछ समय तक इनके छोटे भाई द्वारा नौकरी की गई और उसके बाद नौकरी छोड़कर अपने ग्राम वापस आ गए और ग्राम में ही रहने लगे फिर दोबारा कभी कलकत्ता नहीं गए छोटे भाई द्वारा बिना बताए नौकरी छोड़ कर आ जाने पर पंडित श्रीराम तिवारी को अंग्रेजों द्वारा दंड दिया गया कि आपका भाई बिना बताए हुए नौकरी छोड़कर चला गया है इस कारण आपको अपने भाई का दंड स्वयं भोगना पड़ेगा अंग्रेजों द्वारा कुछ जुर्माना तय किया गया अपने छोटे भाई पर किए गए जुर्माना को इनके द्वारा वहां रहकर अंग्रेजों को देना पड़ा और जो कुछ पैसा बचता वह अपने परिवार के पास भेज देते जिससे परिवार का पालन पोषण होता रहा सन 19 मई 1941 दिन सोमवार को इनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया जब माता जी का स्वर्गवास हुआ तब इनकी उम्र 47 वर्ष थी माता जी की मृत्यु हो जाने से इनको बहुत दुख हुआ क्योंकि इन्हें अपनी माताजी से बहुत प्रेम था इसी प्रेम के खातिर यह अपनी माता जी की मृत्यु के सदमे को सहन नहीं कर पा रहे थे परंतु कुछ समय बाद यह अपनी माता जी की मृत्यु के सदमे से बाहर निकले और अपने परिवार की तरफ ध्यान देने लगे पंडित श्रीराम तिवारी द्वारा अपनी जन्मभूमि ग्राम हिरनगऊ (हिरनगाँव) मैं अपने निवास भवन का निर्माण दिनांक 4 जून 1960 दिन शनिवार को किया जिसका नाम श्रीराम-भवन रख दिया परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा एवं पूर्वजों के आशीर्वाद से इनका विवाह श्यामा देवी उपाध्याय के साथ निवासी ग्राम- चावली (जिला आगरा) से संपन्न हुआ कुछ समय बाद इनके यहां दो पुत्र रत्न एवं चार धन लक्ष्मी पुत्री का जन्म हुआ इनके पुत्रों का नाम पंडित लक्ष्मण स्वरूप तिवारी, परमेश्वर दयाल तिवारी था एवं पुत्रियों का नाम कैलाशी तिवारी, कांतीदेवी उर्फ कंन्तो तिवारी,शांतिदेवी उर्फ संतो तिवारी , रामवती तिवारी था श्रीराम तिवारी की मृत्यु ग्राम हिरनगाँव जनपद फिरोजाबाद मैं हो गई