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2 Sep 2021 · 1 min read

माथ टिकुला सुबह के छटा हो गइल।

माथ टिकुला सुबह के छटा हो गइल।
केश करिया ई सवनी घटा हो गइल।

गोर सुग्घर बदन बा बिजुरिया नियन,
रूप निरखत रहीं रतजगा हो गइल।

नेह लागल बा तोहसे जुड़ाइल हिया,
मन खिलल खिन्नता सब दफ़ा हो गइल।

रात बीतल अन्हरिया चनरमा दिखल,
रौशनी से भरल पूर्णिमा हो गइल।

तू बसवलू सचिनवा के अँखियाँ तरे,
दर्र हियरा के सब अलविदा हो गइल।

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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