शीर्षक :- नालंदा की यादें निलूफ़र शाज़ के लफ्जों में
शीर्षक :- नालंदा की यादें निलूफ़र शाज़ के लफ्जों में
आओ सुनाऊ ज्ञान की सागर की कहानी हम दोनों की जुबानी
शाज़:
धरा की गोद में, ज्ञान का सागर बहता,
नालंदा, तेरी दीवारें अब भी कहती हैं कहानी।
किताबों की खुशबू, गलियों की गूँज,
सदियों बाद भी जैसे साँस ले रही यहाँ ज़माना।
निलूफ़र:
शाज़, देखो! ये पन्ने, ये खंडित ग्रंथ,
भूतकाल के आभास से अब भी चमकते हैं।
विद्यार्थी जो दूर देश से आए,
मन में आशा, हाथ में चिराग लिए।
शाज़:
अग्नि आई, बला आई, सब कुछ भस्म हुआ,
पर नालंदा का जज़्बा कभी न मरा।
यहाँ की शिक्षा, यहाँ का आदर,
हर दिल में अब भी जिंदा, हर रूह में बसेरा।
निलूफ़र:
तो चलो, शाज़, हम भी सीखें उस धरोहर से,
ज्ञान की असली आग, नालंदा के रंगों में।
सदियों की याद, फिर भी मुस्कुराती है,
नालंदा, तू अमर है, हर ज़माने में जीती है।
(शाहबाज आलम शाज़ युवा कवि स्वरचित रचनाकार सिदो-कान्हू क्रांति भूमि बरहेट सनमनी निवासी)