#कविता
#कविता
■ मृतपूजकों के नाम।।
【प्रणय प्रभात】
“बंद करो ये रोना-गाना, घड़ियाली आँसू टपकाना।
बेमतलब का शोर मचाना, जबरन का माहौल बनाना।।
बंद करो फौरन लफ़्फ़ाज़ी, बंद करो सब नाटकबाज़ी।
बेशर्मी की हद सी कर दी, पास रखो झूठी हमदर्दी।।
जीते जी तो हाल न पूछा, कितना रहा मलाल न पूछा।
ना होली दीवाली आए, पड़ी आपदा तो कतराए।।
बची-खुची मर्यादा तोड़ी, मोबाइल पर बातें छोड़ी।
जीते-जी तो किया छलावा, अब करते हो लोक-दिखावा।।
जाओ जाकर जश्न मनाओ, रोनी सूरत मत दिखलाओ।
स्वांग करो मत पीटो ताली, जम कर कोसो दे लो गाली।।
बे-मानी मिनटों का मातम, मरे हुए को काहे का ग़म?
मिथ्या रिश्ते, थोथे नाते, शर्म नहीं आती डकराते??
ज़िंदा दुआ सलाम को तरसा, बाद मरे के अमृत बरसा।
वक़्त-ज़रूरत काम न आए, इस दिन की थे आस लगाए??
मन से अर्थी सजा रहे हो, बड़ी महारथ दिखा रहे हो।
दौड़-धूप की होड़ लगी है, सोई थी संवेदना जगी है।।
वजह मौत की पूछ रहे हो, बे-मतलब में जूझ रहे हो।
कहाँ छुपा कट रख दी निंदा, चैन दिया ना रहते ज़िंदा।।
आसपास सब लोग वही हैं, अब तारीफ़ें सूझ रही हैं।
बाहर झूठ परोस रहे हो, अंदर-अंदर कोस रहे हो।।
झूठमूठ में सिर मत फोड़ो, सन्तप्तों का पीछा छोड़ो।
विवश न होता मूक न रहता, नाटक-नौटंकी क्यों सहता??
खरी-खरी सौ बात सुनाता, जी भर के कोहराम मचाता।
कहता जीभ खोल पाता तो, मुर्दा अगर बोल पाता तो।।”
#कथ्य…
【लोक दिखावा पसंद कथित इंसानी समाज की घटिया व दिखावे की सोच और झूठे सरोकार पर एक तीखा प्रहार】
संपादक
न्यूज़&व्यूज
(मध्यप्रदेश)