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30 Nov 2025 · 1 min read

हृदय को तोड़ती वो मजबूरियां, जो बतायी नहीं जा सकती,

हृदय को तोड़ती वो मजबूरियां, जो बतायी नहीं जा सकती,
आँखों में तो दिखती हैं, पर अधरों से जताई नहीं जा सकती।
ये पथ निष्ठुर हैं, जो क़दमों की परीक्षाएं तय किये बैठा है,
रिसते घावों की मौन चीखें हैं, जो सुनाई नहीं जा सकती।
परिस्थितियों में एकांत है, सवालों की भारी सी गठरी है,
वक़्त के घायल सीने में जवाब है, जो मस्तिष्क की संकीर्णता तक पहुंचाई नहीं जा सकती।
कुछ दरकते रिश्ते हैं, जो सागर तल के राही हैं,
कहीं सुदूर डूबती सी एक तन्हा नाव भी है, जो बुलाई नहीं जा सकती।
स्तंभित ये अस्तित्व है, जो अस्वीकार्यता का वाहक है,
सत्य के गहरे टांकें हैं, जिनकी टीस अब मिटाई नहीं जा सकती।
पश्चाताप में जलता एक रण है, नग्न अस्तित्व का रुदन है,
विषाक्त बाणों से सींची धरा है, जिसकी प्यास बुझाई नहीं जा सकती।
इस अदृश्यता का नवीन बोध में निरर्थकता की परछाईयाँ है,
महत्वहीनता के मेले में, अब पहचान बनायी नहीं जा सकती।

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