मुक्तक
कह रहीं हैं धड़कनें ,दिल ये बेक़रार है।
बन क़लम सहभागिनी,सुनती रही ग़ुबार है।
डायरी के वरक़ पर फिर मुस्कुराई है ग़ज़ल,
इस सदी को भी तेरा सदी से इंतज़ार है ।।
डॉक्टर रागिनी स्वर्णकार
कह रहीं हैं धड़कनें ,दिल ये बेक़रार है।
बन क़लम सहभागिनी,सुनती रही ग़ुबार है।
डायरी के वरक़ पर फिर मुस्कुराई है ग़ज़ल,
इस सदी को भी तेरा सदी से इंतज़ार है ।।
डॉक्टर रागिनी स्वर्णकार