Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 Nov 2025 · 1 min read

बे-आवाज़ ...

बे-आवाज़ …

छू लिया था
फ़लक को
मौन शमशान में
एक तन्हा
जलते हुए जिस्म के धुऐं ने

रोने वाली
कोई आँख साथ न थी
शायद कोई लावारिस था
या फिर
किसी ज़िदंगी के
फ़लसफ़े का
कोई हर्फ़
बे-आवाज़
घुट के
मर गया
इन्तिज़ार के लिहाफ में

सुशील सरना /

Loading...