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19 Nov 2025 · 3 min read

उत्तराखंड की बेटी, जो बनी पाकिस्तान की “फ़र्स्ट लेडी”

उत्तराखंड की एक ब्राह्मण लड़की पाकिस्तान की मदर-ए-वतन कैसे बन गई?

आज कहानी है उस कुमाऊँनी बेटी की, जो सरहदों के पार जाकर बेगम राणा लियाकत अली खान बन गई।
पंतों की वह बेटी, जिसके बारे में आज शायद ही कोई बात करता है।
नमस्कार, मेरा नाम है रक्षिता और आप देख रहे हैं ख़बर उत्तराखंड।
इस कहानी की जड़ें शुरू होती हैं कुमाऊँ से।
साल 1870 के दशक में कुमाऊँ के एक नामी-गिरामी ब्राह्मण परिवार के तारादत्त पंत ने अपना धर्म बदल लिया। बनारस में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।
समाज ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया, परिवार ने मान लिया कि तारा दत्त पंत अब “मर” चुके हैं।
लेकिन इसी फैसले ने उनके बच्चों के लिए आधुनिक शिक्षा के दरवाज़े खोल दिए।
इसी परिवार में 1905 में जन्म हुआ आइरीन पंत का।
आइरीन, तारादत्त पंत के बेटे डैनियल पंत की बेटी थीं।
लखनऊ में पढ़ीं और आज़ादी की लड़ाई में भी काफी सक्रिय रहीं।
जब साइमन कमीशन भारत आया, तो ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाती भीड़ में आइरीन भी शामिल थीं।
यहीं उनकी नज़र पड़ी यूपी विधान परिषद के सदस्य— लियाकत अली खान पर।
करनाल के नवाब, ऑक्सफ़ोर्ड से पढ़े-लिखे, और उस समय के नौजवानों के हीरो।
आइरीन भी उनकी शख़्सियत से बेहद प्रभावित हुईं।
एक दिन एक चैरिटी कार्यक्रम के लिए टिकट बेचते हुए आइरीन विधानसभा पहुँचीं।
लियाकत अली खान ने एक टिकट खरीदा।
आइरीन ने कहा—
“एक नहीं, दो टिकट लीजिए… और किसी को साथ लेकर आइएगा।”
लियाकत ने जवाब दिया—
“मेरे पास ऐसा कोई नहीं है जिसे मैं साथ ला सकूँ।”
तो आइरीन मुस्कुराते हुए बोलीं—
“अगर कोई नहीं मिला… तो मैं आपके साथ बैठ जाऊँगी।”

बस, यहीं से मुलाक़ातें शुरू हुईं… और जल्द ही यह रिश्ता मोहब्बत में बदल गया।

लेकिन आइरीन के परिवार ने इस रिश्ते का कड़ा विरोध किया।
लियाकत अली न सिर्फ उम्र में बड़े थे, बल्कि शादीशुदा और एक बच्चे के पिता भी थे।
मगर आइरीन ने अपने दादा की तरह समाज की परवाह नहीं की।
उन्होंने इस्लाम कबूल किया, अपना नाम आइरीन पंत से “गुले राणा” रखा…
और 16 अप्रैल 1933 को लियाकत अली खान से निकाह कर लिया।
इस फैसले के बाद अल्मोड़ा की वह बेटी फिर कभी अपने घर वापस नहीं जा सकी।
शादी के बाद गुले राणा, लियाकत अली खान की राजनीतिक सलाहकार बन गईं।
जिन्ना को लंदन से वापस बुलाकर मुस्लिम लीग को फिर से खड़ा करने में
गुले राणा और लियाकत अली दोनों की बड़ी भूमिका रही।

फिर आया 1947।
देश बंट रहा था… लोग दो हिस्सों में बाँटे जा रहे थे।
उन्हीं में से एक थीं गुले राणा, जो सब कुछ पीछे छोड़कर पाकिस्तान की फ़र्स्ट लेडी बनने जा रही थीं।

पाकिस्तान पहुँचकर गुले राणा ने खुद को पूरी तरह महिलाओं के हक़ के लिए समर्पित कर दिया।
उन्होंने पाकिस्तान वूमेन्स नेशनल गार्ड बनाई, नर्सों को ट्रेनिंग दी,
और शरणार्थी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिन-रात काम किया।
इन्हीं योगदानों की वजह से उन्हें “मादर-ए-पाकिस्तान” कहा गया।
जीवन आगे बढ़ रहा था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
1951 में एक रैली के दौरान लियाकत अली खान की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
गुले राणा अचानक अकेली रह गईं—दो बच्चों की जिम्मेदारी और बैंक में खर्च चलाने तक के पैसे नहीं।
लेकिन वह टूटी नहीं।
उन्होंने हौसला रखा… और आगे चलकर नीदरलैंड व इटली में पाकिस्तान की राजदूत बनीं।
वह पाकिस्तान की पहली महिला गवर्नर भी बनीं।
महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों को आज भी पाकिस्तान में सम्मान से याद किया जाता है।
गुले राणा को पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ भी दिया गया।
अल्मोड़ा की बेटी से लेकर पाकिस्तान की फ़र्स्ट लेडी तक…
गुले राणा का यह सफर इतिहास के पन्नों में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली एक मजबूत महिला के रूप में दर्ज है।

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