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19 Nov 2025 · 4 min read

शिव को भजो रे मन..

शिव को भजो रे मन,

भारत में हिन्दुओं द्वारा
दरगाह पूजन पर
अन्य देशों से
एक तुलनात्मक अध्ययन
एवं इस विषय पर
एक काव्य रचना…

इस्लाम का उदय
सऊदी अरब में हुआ है और
सऊदी अरब में दरगाहों पर
चादर चढ़ाना और
मजारों के पास जाकर
दुआ मांगना निषिद्ध है
सऊदी अरब की आधिकारिक
विचारधारा में मौहम्मद पैगम्बर एवं
संबंधितों को छोड़कर
दरगाहों पर बनाए गए
स्मारक और मजारों को
गैर-इस्लामिक माना जाता है,
इसलिए ऐसी संरचनाओं को
तोड़ दिया जाता है।
यदि ताजमहल सऊदी अरब
में होता तो शाहजहां और
मुमताज की कब्र व्यक्तिविशेष
का होने के कारण उसपर बनी
स्मारक को मोहम्मद पैगम्बर के
उसूलों के खिलाफ मानते हुए
उसे भी तोड़ दिया जाता।
तो फिर यह प्रश्न उठता है कि
भारत में कैसे इतने दरगाह और
मजार विस्तारित रूप से
फैलते चले गए _
गहन अध्ययन के पश्चात
एक ही उत्तर मिलता है कि
भारत में सूफीवाद और
दरगाह विस्तार का
मुख्य उद्देश्य इस्लाम का
विस्तारीकरण रहा है
और सूफी सन्तों का इस्तेमाल
हिन्दुओं की विचारधाराओं को
मोड़ने के लिए किया जाता रहा है।
भारत को इस्लामिक देश
बनाने के लिए जमीन
कब्जा करना भी एक
उद्देश्य हो सकता है..
बरेली के छांगुर बाबा कांड में
भी इस बात की पुष्टि हुई है
जलालुद्दीन,उर्स में हिंदुओं को
धर्मान्तरण के लिए उकसाता था ,
लखनऊ की गुंजा
उर्स के माध्यमसे ही
अलीना बनीं थी।
सूफ़ीवाद परंपराएं
दिल्ली सल्तनत के 10 वीं
और 11 वीं शताब्दी के दौरान
और उसके बाद
शेष भारत में दिखाई दीं..
पुरातन कश्मीर में भी 1372
ईस्वी में मीर सैय्यद अली हमदानी
700 अनुयायियों के साथ
मध्य एशिया से भारत
इस्लाम के विस्तारीकरण
के लिए आए थे।
भारत में जब भक्ति आंदोलन
दक्षिण भारत में आलवार (विष्णु भक्त)
और नायनार (शिव भक्त) संतों से
शुरू हुआ तो इन संतों ने
जाति और लिंग भेदभाव को
नकारा और अपने भक्ति गीतों के
माध्यम से आम लोगों को
धार्मिक अनुभव में शामिल किया।
उत्तर भारत में यह परंपरा कबीर,
मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास
जैसे संतों के रूप में सामने आई।
इन संतों ने विभिन्न भाषाओं में
रचनाएँ कीं और सीधे हृदय से
ईश्वर भक्ति पर बल दिया।
कबीर कहते थे कि हिन्दू और
मुस्लिम दोनों ही भुलावे में हैं।
इनमें से कोई भी एक
राम या ईश्वर को प्राप्त
नहीं कर सकता,
एक बकरे को मारता है
और दूसरा गाय को और
दोनों अपना पूरा जीवन इन्हीं
विवादों में ही गँवा देते हैं कि
कौन सही है और कौन गलत।
सुल्तानों ने तब भारत में
इस्लामिक विस्तार का उद्देश्य लिए
सुफीवाद का प्रश्रय लिया तो
खानकाहों में शिष्यों को
शिक्षा दी जाने लगी
और संगीत व कव्वाली
का सहारा लेकर ईश्वर से
जुड़ने का मार्ग दिखाया गया,
सूफीवाद के फलस्वरूप
पुरोहितवाद,यज्ञ और मूर्ति पूजा के
जटिल नियमों से लोगों का मन को
हटाकर इस्लाम की तरफ
आकृष्ट होने में काफी मदद मिली।
सैद्धांतिक रूप से
मुसलमान शासकों को उलमा के
मार्गदर्शन पर चलना होता था,
उलमा से यह अपेक्षा की जाती
थी कि वे शासन में शरिया का
अमल सुनिश्चित करवाएंगे,
किंतु भारतीय उपमहाद्वीप में
स्थिति जटिल थी क्योंकि
बड़ी आबादी इस्लाम धर्म को
मानने वाला नहीं था ।
इसलिए सूफीवाद और
दरगाह पूजन का सहारा
लिया गया।
हालांकि कुछ सूफी सन्तों के
निःस्वार्थ भाव से समाज में
धार्मिक सहिष्णुता और
समरसता को बढ़ावा मिला
फिर भी इस नये दर्शन का मुख्य
लक्ष्य भारत में इस्लाम का
विस्तारीकरण करना ही रहा है..
पढ़िए इस विषय पर
एक काव्य रचना..

शिव को भजो रे मन
शव में क्यूँ भरमाया है..

अरब देशों में सदा ही
दरगाहों का प्रतिरोध रहा है..
कहते हैं इस्लाम में वर्जित है,
यह उसूलों के खिलाफ रहा है..

करिए बस मस्जिदों में इबादत
कब्र पूजा सदा नापाक रहा है,
सजदे कुबूल हो सिर्फ नबी का
खुदा का यही इंसाफ रहा है..

फिर भारत में ये परम्परा कैसी
यह कैसा विश्वास रहा है.
किस बंदे ने शुरू की कब्रपूजा
किसने यह नया ईजाद किया है..

लगता यह सोची साजिश थी
सुफी संतो को आयात किया है,
धर्मान्तरण का था नया तरीका
सनातन को बस आघात किया है..

बनाकर सीमेंट का एक चबूतरा
हरे रंग का एक चादर ओढ़ाया है,
ना हो कोई साक्ष्य मिल्कियत का
फिर भी जमीं को अपना बनाया है..

मोर का पंख और झाड़ू सटाकर
दरगाहों नें जी भरकर कमाया है,
मौजुद नहीं कब्र के निशां फिर भी
हिंदूओं ने जाकर चादर चढ़ाया है..

अनगिनत मुरादें लिए हिन्दू
कब्रों पर यूं ही भटकते फिरते हैं
श्रद्धा शिव पर जिसे नहीं होता ,
तो शव में ईष्ट को ढूंढते फिरते हैं ..

कब्र में हो यदि शत्रु दरगाह में
फिर उस जमीं पर मत्था टेका है,
कहते हैं फिर दुःखी होकर के
मैंने वरदान शिव का नहीं पाया है..

अंतिम पंक्तियां __

शिव को भजो रे मन,
शव में क्यूँ भरमाया है..
शिव में है सारा जग,
शिव सबमें समाया है..
मन को लगा शिव में
जिसने जपा शिव को,
हरते हैं सभी दुःखों को शिव,
ये शिवजी की माया है..

शिव को भजो रे मन,
शव में क्यूँ भरमाया है..

“मौलिक एवं स्वरचित”
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कर्ण
कटिहार( बिहार )
तिथि –१९/११ /२०२५ ,
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष,चतुर्दशी,बुधवार
विक्रम संवत २०८२

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