अपने बेगाने
अपने बेगाने
जिनके लिए अपने बेगाने छोड़े
हमसे वही अनजान बन गए
जिनको समझा सूरज अपना
जिनके लिए था मैंने तपना
जिनको माना सच और सपना
सपने ही निराधार बन गए
जिनको पूजा प्रेम किया था
तन मन धन अपना दिया था
जीवन में आधार लिया था
मेरा ही झूठा सार बन गए
आज समय अब पूछता मुझसे
अध्यात्म का प्रश्न करे ये तुझसे
क्या व्यवहार किया था मुझसे
आराध्य ही आभार बन गए