— “चाटुकार”
— “चाटुकार”
मुँह में मीठे बोल हैं, पीठ करे वह वार।
स्वार्थ हेतु सब कर रहा, छल का व्यापार।
झूठी प्रशंसा में मिला, मानो सारा सार।
सत्ता के गलियारों में, फलता चाटुकार॥
भावार्थ:
उपर्युक्त छंद उन लोगों पर व्यंग्य करती है जो अपने स्वार्थ के लिए मीठी बातें बनाते हैं, दूसरों की झूठी प्रशंसा करते हैं, और सच बोलने से बचते हैं। ऐसे लोग समाज और शासन—दोनों के लिए हानिकारक हैं।
✍️ लेखनाधिकार सुरक्षित: डॉ. नीरू मोहन